Guruji Charudatta Thorat
|| विष्णुभक्त चारूदत्त अभंगगाथा ||
जय हरी जय हरी |
हरी नामां पंढरपूरी || १ ||
मधूर आविट हरी नाम |
गूढीत परम हरिवर्म || २ ||
पावतों निश्चय संताचीया येथ |
प्राप्तते सदैव ''संतत्व'' तेथ || ३ ||
विष्णूर्निज हृदयीं बोलतो सु"चारू" |
एक परमात्मा अनंत उभारूः || ४ ||
दास दत्ताश्रय इति सत्ऽ वचनः |
एक दत्ताश्रयण विष्णुश्रयणः || ५ |||
- Guruji Shri.Charudatta M Thorat